एक बोसा दीजिए मेरा ईमान लीजिए
गो बुत हैं आप बहर ए ख़ुदा मान लीजिए,
दिल ले के कहते हैं तेरी ख़ातिर से ले लिया
उल्टा मुझी पे रखते हैं एहसान लीजिए,
ग़ैरों को अपने हाथ से हँस कर खिला दिया
मुझ से कबीदा हो के कहा पान लीजिए,
मरना क़ुबूल है मगर उल्फ़त नहीं क़ुबूल
दिल तो न दूँगा आप को मैं जान लीजिए,
हाज़िर हुआ करूँगा मैं अक्सर हुज़ूर में
आज अच्छी तरह से मुझे पहचान लीजिए..!!
~अकबर इलाहाबादी


























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