दुश्मन की दोस्ती है अब अहल ए वतन के साथ
है अब ख़िज़ाँ चमन में नए पैरहन के साथ,
सर पर हवा ए ज़ुल्म चले सौ जतन के साथ
अपनी कुलाह कज है उसी बाँकपन के साथ,
किस ने कहा कि टूट गया ख़ंजर ए फ़रंग
सीने पे ज़ख़्म ए नौ भी है दाग़ ए कुहन के साथ,
झोंके जो लग रहे हैं नसीम ए बहार के
जुम्बिश में है क़फ़स भी असीर ए चमन के साथ,
मजरूह क़ाफ़िले की मेंरे दास्ताँ ये है
रहबर ने मिल के लूट लिया राहज़न के साथ..!!
~मजरूह सुल्तानपुरी