दुश्मन है कौन और मेरा यार कौन है
खुलता नहीं कि बरसर ए पैकार कौन है ?
दरिया ए आगही में भी मुझ पर नहीं खुला
किस की मुझे तलाश है उस पार कौन है ?
दिल की हिरा में आ के ख़ुद उक़्दा कुशाई कर
तुझ ऐसा और साहिब ए किरदार कौन है ?
हर एक अपनी सोच के सहरा में है रवाँ
मसरूफ़ ए कार सब हैं तो बेकार कौन है ?
यूँ चश्म ए इल्तिफ़ात से कर मुझ को फ़ैज़याब
सब पूछते फिरें कि ये इक़रार कौन है..!!
~इक़रार मुस्तफ़ा
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