डूबने वाले की मय्यत पर लाखों रोने वाले हैं
फूट फूट कर जो रोते हैं वही डुबोने वाले हैं,
किस किस को तुम भूल गए हो ग़ौर से देखो बादा कशो
शीश महल के रहने वाले पत्थर ढोने वाले हैं,
सोने का ये वक़्त नहीं है जाग भी जाओ बेख़बरो
वर्ना हम तो तुम से ज़्यादा चैन से सोने वाले हैं,
आज सुना कर अपना फ़साना हम ये करेंगे अंदाज़ा
कितने दोस्त हैं हँसने वाले कितने रोने वाले हैं ?
मैं भी उन्हें पहचान रहा हूँ ग़ौर से देखो बादा कशो
शायद शैख़ ए हरम बैठे हैं वो जो कोने वाले हैं..!!
~फ़ना निज़ामी कानपुरी