देखे हैं दिल नशीन मनाज़िर हिजाब के
होते हैं रंग सैंकड़ों पागल जो ख़्वाब के,
ख़ुशबू जिसे समझते हो है ख़ून ए ज़ख़्म ए गुल
देखे नहीं हैं ज़ख़्म किसी ने गुलाब के,
ये क्या हुआ कि ग़ौर से देखा था उनको बस
रंग उड़ गए हैं देखिए कैसे जनाब के,
मिलती है रौशनी उन्हें एहसास से मेंरे
दीवाने हैं वो इस लिए मेरी किताब के,
उनको मिला है देखिए आसान था जिन्हें
क्या मअनी रह गए हैं भला इस ख़िताब के..!!
~इरशाद अज़ीज़
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