बाग़ पा कर ख़फ़क़ानी ये डराता है मुझे…

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बाग़ पा कर ख़फ़क़ानी ये डराता है मुझे साया-ए-शाख़-ए-गुल अफ़ई नज़र आता है मुझे, जौहर-ए-तेग़ ब-सर-चश्म-ए-दीगर मालूम हूँ

क़यामत है कि सुन लैला का दश्त-ए-क़ैस में आना…

क़यामत है कि सुन लैला

क़यामत है कि सुन लैला का दश्त-ए-क़ैस में आना तअ’ज्जुब से वो बोला यूँ भी होता है ज़माने

तुम जानो तुम को ग़ैर से जो रस्म-ओ-राह हो…

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तुम जानो तुम को ग़ैर से जो रस्म-ओ-राह हो मुझ को भी पूछते रहो तो क्या गुनाह हो

नहीं कि मुझको क़यामत का ए’तिक़ाद नहीं…

नहीं कि मुझको क़यामत

नहीं कि मुझको क़यामत का ए’तिक़ाद नहीं शब-ए-फ़िराक़ से रोज़-ए-जज़ा ज़ियाद नहीं, कोई कहे कि शब-ए-मह में क्या

नफ़स न अंजुमन-ए-आरज़ू से बाहर खींच…

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नफ़स न अंजुमन-ए-आरज़ू से बाहर खींच अगर शराब नहीं इंतिज़ार-ए-साग़र खींच, कमाल-ए-गर्मी-ए-सई-ए-तलाश-ए-दीद न पूछ ब-रंग-ए-ख़ार मिरे आइने से

न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता…

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न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता डुबोया मुझ को होने ने न

चलो सागर ए इश्क़ का किनारा ढूँढे

chalo-sagar-e-ishq

चलो सागर ए इश्क़ का किनारा ढूँढे डूबने वालो के लिए सहारा ढूँढे, यूँ भी ज़माने में गम

कभी लफ्ज़ भूल जाऊँ, कभी बात भूल जाऊँ…

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कभी लफ्ज़ भूल जाऊँ कभी बात भूल जाऊँ तुझे इस क़दर चाहूँ कि अपनी ज़ात भूल जाऊँ उठ

जो तेरे प्यार के दरियाँ कशीद हो जाएँ

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जो तेरे प्यार के दरियाँ कशीद हो जाएँ मेरी हयात के मंज़र ज़दीद हो जाएँ, तुम्हारी चश्म ए

हम जो बे हाल ए ज़ार बैठे है…

हम जो बे हाल

हम जो बे हाल ए ज़ार बैठे है दिल की दिल में हार बैठे है, तेरी महफ़िल से