अपनी ज़रूरत के मुताबिक़….

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अपनी ज़रूरत के मुताबिक़ लोगो के जज़्बात बदल जाते है, इंसानों की इन्हें फिक़र नहीं मगर ये हैवानो

किस को पार उतारा तुम ने किस को पार उतारोगे

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किस को पार उतारा तुम ने किस को पार उतारोगेमल्लाहो तुम परदेसी को बीच भँवर में मारोगे, मुँह

हर एक दर्द मुहब्बत के नाम होता है…

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हर एक दर्द मुहब्बत के नाम होता हैयही तमाशा मगर सुबह ओ शाम होता है, कही भी मिलता

एक नगर के नक़्श भुला दूँ एक नगर ईजाद करूँ…

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एक नगर के नक़्श भुला दूँ एक नगर ईजाद करूँएक तरफ़ ख़ामोशी कर दूँ एक तरफ़ आबाद करूँ,

एक तेज़ तीर था कि लगा और निकल गया

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एक तेज़ तीर था कि लगा और निकल गयामारी जो चीख़ रेल ने जंगल दहल गया, सोया हुआ

ग़ैरों से मिल के ही सही बे-बाक तो हुआ…

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ग़ैरों से मिल के ही सही बे-बाक तो हुआबारे वो शोख़ पहले से चालाक तो हुआ, जी ख़ुश

ग़म की बारिश ने भी तेरे नक़्श को धोया नहीं

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ग़म की बारिश ने भी तेरे नक़्श को धोया नहींतू ने मुझ को खो दिया मैं ने तुझे

चादर की इज्ज़त करता हूँ

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चादर की इज्ज़त करता हूँऔर परदे को मानता हूँ, हर परदा परदा नहीं होताइतना मैं भी जानता हूँ,

कोई तो फूल खिलाए दुआ के लहज़े में…

कोई तो फूल खिलाए

कोई तो फूल खिलाए दुआ के लहज़े मेंअज़ब तरह की घुटन है हवा के लहज़े में, ये वक़्त

ख़बर क्या थी कि ऐसे अज़ाब उतरेंगे…

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ख़बर क्या थी कि ऐसे अज़ाब उतरेंगेजो होंगे बाँझ वो आँखों में ख़्वाब उतरेंगे, सजेंगे ज़िस्म पे कुछ