दूर होते हुए क़दमों की ख़बर जाती है
दूर होते हुए क़दमों की ख़बर जाती है ख़ुश्क पत्ते को लिए गर्द ए सफ़र जाती है, पास
Sad Poetry
दूर होते हुए क़दमों की ख़बर जाती है ख़ुश्क पत्ते को लिए गर्द ए सफ़र जाती है, पास
उसे बेचैन कर जाऊँगा मैं भी ख़मोशी से गुज़र जाऊँगा मैं भी, मुझे छूने की ख़्वाहिश कौन करता
महफ़िलें लुट गईं जज़्बात ने दम तोड़ दिया साज़ ख़ामोश हैं नग़्मात ने दम तोड़ दिया, हर मसर्रत
चेहरे पे सारे शहर के गर्द ए मलाल है जो दिल का हाल है वही दिल्ली का हाल
ख़्वाब का रिश्ता हक़ीक़त से न जोड़ा जाए आईना है इसे पत्थर से न तोड़ा जाए, अब भी
दुनियाँ में शातिर नहीं अब शरीफ़ लटकते है अब सच्चो की बात छोड़ो वो तो सर पटकते है,
रंग ए नफ़रत तेरे दिल से उतरता है कभी ? एक रवैया है मुरव्वत, उसे बरता है कभी
यहाँ मरने की दुआएँ क्यूँ मांगूँ ? यहाँ जीने की तमन्ना कौन करे ? ये दुनियाँ हो या
काम उसके सारे ही सय्याद वाले है मगर मैं उसे बहेलिया नहीं लिखता सर्दियाँ जितनी हो सब सह
हम से तो किसी काम की बुनियाद न होवे जब तक कि उधर ही से कुछ इमदाद न