दिल दे कर संगदिल को…
दिल दे कर संगदिल को ज़िन्दगी दुश्वार नहीं करना यूँ हर किसी से अपने इश्क़ का इजहार नहीं
Sad Poetry
दिल दे कर संगदिल को ज़िन्दगी दुश्वार नहीं करना यूँ हर किसी से अपने इश्क़ का इजहार नहीं
एक बेवा की आस लगती है ज़िंदगी क्यों उदास लगती है, हर तरफ़ छाई घोर तारीकी रौशनी की
हक़ीक़तों में बदलता सराब चुभने लगा जो बन सका न हक़ीक़त वो ख़्वाब चुभने लगा, सवाल सख़्त हमारा
यहाँ शोर बच्चे मचाते नहीं हैं परिंदे भी अब गीत गाते नहीं हैं, वफ़ा के फ़लक पर मोहब्बत
ख़ुद्दार मेरे शहर का फाक़ो से मर गया राशन जो आ रहा था वो अफ़सर के घर गया,
बिस्तर ए मर्ग पर ज़िंदगी की तलब जैसे ज़ुल्मत में हो रौशनी की तलब, कल तलक कमतरी जिन
दिल की इस दौर में क़ीमत नहीं होती शायद सब की क़िस्मत में मुहब्बत नहीं होती शायद, फ़ैसला
सफ़र ए वफ़ा की राह में मंज़िल जफा की थी कागज़ का घर बना के भी ख्वाहिश हवा
भूख़ चेहरों पे लिए चाँद से प्यारे बच्चे बेचते फिरते हैं गलियों में ग़ुबारे बच्चे, इन हवाओं से
पहले जो ख़ुद माँ के आंचल में छुप जाया करती थी आज वो ख़ुद किसी को आंचल में