कौन मुन्सफ़, कहाँ इंसाफ़, किधर का दस्तूर

kaun munsaf kahan insaf

कौन मुन्सफ़, कहाँ इंसाफ़, किधर का दस्तूर अब ये मिज़ान सजावट के सिवा कुछ भी नहीं, अदालत की

हरिस दिल ने ज़माना कसीर बेचा है

haris dil ne zamana kaseer

हरिस दिल ने ज़माना कसीर बेचा है किसी ने जिस्म किसी ने ज़मीर बेचा है, नहीं रही बशीरत

सताते हो तुम मज़लूमों को सताओ

satate ho tum mazlumon ko

सताते हो तुम मज़लूमों को सताओ मगर ये समझ के ज़रा ज़ुल्म ढहाओ मज़ालिम का लबरेज़ जब जाम

अज़ब रिवायत है क़ातिलों का एहतराम करो

azab riwayat hai qaatilon ko

अज़ब रिवायत है क़ातिलों का एहतराम करो गुनाह के बोझ से लदे काँधों को सलाम करो, पहचान गर

वतन से उल्फ़त है जुर्म अपना…

watan se ulfat hai zurm

वतन से उल्फ़त है जुर्म अपना ये जुर्म ता ज़िन्दगी करेंगे है किस की गर्दन पे खून ए

पहले जनाब कोई शिगूफ़ा उछाल दो

pahle janab koi shigufa uchhal do

पहले जनाब कोई शिगूफ़ा उछाल दो फिर कर का बोझ गर्दन पर डाल दो, रिश्वत को हक़ समझ

बादशाहों को सिखाया है क़लंदर होना

baadshahon ko sikhaya hai kalandar hona

बादशाहों को सिखाया है क़लंदर होना आप आसान समझते हैं मुनव्वर होना, एक आँसू भी हुकूमत के लिए

सौ में सत्तर आदमी फ़िलहाल जब नाशाद हैं

sau men sattar aadmi filhal jab

सौ में सत्तर आदमी फ़िलहाल जब नाशाद हैं दिल रखकर हाथ कहिए देश क्या आज़ाद है ? कोठियों

ख़ुद्दार मेरे शहर का फाक़ो से मर गया

khuddar mere shahar ka faaqon se mar gaya

ख़ुद्दार मेरे शहर का फाक़ो से मर गया राशन जो आ रहा था वो अफ़सर के घर गया,

बहुत ख़राब रहा इस दौर मे

bahut kharab raha is daur men

बहुत ख़राब रहा इस दौर मे एक क़ौम का अच्छा होना, रास ना आया मनहूसों को क़ौम का