फ़लसफ़े इश्क़ में पेश आए सवालों की तरह
फ़लसफ़े इश्क़ में पेश आए सवालों की तरह हम परेशाँ ही रहे अपने ख़यालों की तरह, शीशागर बैठे
Poetries
फ़लसफ़े इश्क़ में पेश आए सवालों की तरह हम परेशाँ ही रहे अपने ख़यालों की तरह, शीशागर बैठे
ज़िंदगी तुझ को जिया है कोई अफ़्सोस नहीं ज़हर ख़ुद मैं ने पिया है कोई अफ़्सोस नहीं, मैंने
अहल ए उल्फ़त के हवालों पे हँसी आती है लैला मजनूँ की मिसालों पे हँसी आती है, जब
पत्थर के ख़ुदा पत्थर के सनम पत्थर के ही इंसाँ पाए हैं तुम शहर ए मोहब्बत कहते हो
शायद मैं ज़िंदगी की सहर ले के आ गया क़ातिल को आज अपने ही घर ले के आ
किसी रंजिश को हवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी मुझको एहसास दिला दो कि मैं ज़िंदा हूँ
मेरे दुख की कोई दवा न करो मुझको मुझ से अभी जुदा न करो, नाख़ुदा को ख़ुदा कहा
सामने है जो उसे लोग बुरा कहते हैं जिस को देखा ही नहीं उस को ख़ुदा कहते हैं,
कुछ तो दुनिया की इनायात ने दिल तोड़ दिया और कुछ तल्ख़ी ए हालात ने दिल तोड़ दिया,
अगर हम कहें और वो मुस्कुरा दें हम उन के लिए ज़िंदगानी लुटा दें, हर एक मोड़ पर