मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हूँ…

main ise odhta bichhata hoo wo gazal aapko sunata hoon

मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हूँ वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ, एक जंगल है तेरी आंखों में मैं जहाँ

कुछ देर का है रोना, कुछ देर की हँसी है

kuch der ka hai rona kuch der ki hansi hai

कुछ देर का है रोना, कुछ देर की हँसी है कहीं ठहरती नहीं इसी का नाम ज़िन्दगी है,

पा सके न सुकूं जो जीते जी वो मर के…

paa sake na sukun jo jite ji wo mar ke kahan payenge

पा सके न सुकूं जो जीते जी वो मर के कहाँ पाएँगे शहर के बेचैन परिंदे फिर लौट

सहर ने अंधी गली की तरफ़ नहीं देखा

sahar ne andhi gali ki taraf nahi dekha

सहर ने अंधी गली की तरफ़ नहीं देखा जिसे तलब थी उसी की तरफ़ नहीं देखा, क़लक़ था

ये जो पल है ये पिछले पल से भी भारी है

ye jo pal hai ye pichle pal se bhari hai

ये जो पल है ये पिछले पल से भी भारी है हमसे पूछो हमने ज़िन्दगी कैसे गुज़ारी है,

हमारे दिल पे जो ज़ख़्मों का बाब लिखा है

hamare dil pe zakhmo ka jo bab likha hai

हमारे दिल पे जो ज़ख़्मों का बाब लिखा है इसी में वक़्त का सारा हिसाब लिखा है, कुछ

एक मकाँ और बुलंदी पे बनाने न दिया

ek maqaan aur bulandi pe banane na diya

एक मकाँ और बुलंदी पे बनाने न दिया हमको परवाज़ का मौक़ा ही हवा ने न दिया, तू

मैंने ऐ दिल तुझे सीने से लगाया हुआ है

maine ae dil tujhe sine se lagaya hua hai

मैंने ऐ दिल तुझे सीने से लगाया हुआ है और तू है कि मेरी जान को आया हुआ

अकेले रहने की सजा कबूल कर गलती…

akele rahne ki saza qubul kar galti tumne ki hai

अकेले रहने की सजा कबूल कर गलती तुमने की है मुझ पर यूँ ऐतबार न करने में भी

ख़्वाब दिखाने वाले से होशियार रहो

khwab dikhane wale se hoshiyar raho

ख़्वाब दिखाने वाले से होशियार रहो जादूगर की चालो से होशियार रहो, गाफ़िल ज़रा हुए तो सर कट