ऐसे मौसम में भला कौन जुदा होता है

aise-mausam-me-bhala

ऐसे मौसम में भला कौन जुदा होता है जैसे मौसम में तू हर रोज़ खफ़ा होता है, रोज़

मैं सुबह बेचता हूँ, मैं शाम बेचता हूँ

main-subah-bechta-hoo

मैं सुबह बेचता हूँ, मैं शाम बेचता हूँ नहीं मैं महज़ अपना काम बेचता हूँ, इन बूढ़े दरख्तों

पेड़ मुझे तब हसरत से देखा करते थे

ped-mujhe-tab-hasrat

पेड़ मुझे तब हसरत से देखा करते थे जब मैं जंगल में पानी लाया करता था, थक जाता

शोर करूँगा और न कुछ भी बोलूँगा

shor-karunga-aur-na

शोर करूँगा और न कुछ भी बोलूँगा ख़ामोशी से अपना रोना रो लूँगा, सारी उम्र इसी ख्वाहिश में

दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने वाला

dost-ban-kar-bhi

दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने वाला वही अंदाज़ है ज़ालिम का ज़माने वाला, अब उसे लोग

कर्ब हरे मौसम को तब तक सहना पड़ता है

karb-hare-mausam-ko

कर्ब हरे मौसम को तब तक सहना पड़ता है पतझड़ में तो पात को आख़िर झड़ना पड़ता है,

दुख फ़साना नहीं कि तुझ से कहें

dukh-fasana-nahi-ki

दुख फ़साना नहीं कि तुझ से कहें दिल भी माना नहीं कि तुझ से कहें, आज तक अपनी

जंगल काट दिए और फिर शहर भी जला दिए

jungle-kaat-diye-aur

जंगल काट दिए और फिर शहर भी जला दिए अपने घरो के चिराग़ लोगो ने ख़ुद बुझा दिए,

पगडंडी पर छाँवो जैसा कुछ नहीं दिखता

pagdandi-par-chhanvo-jaisa

पगडंडी पर छाँवो जैसा कुछ नहीं दिखता गाँवों में अब गाँवों जैसा कुछ नहीं दिखता, कथनी सबकी कड़वी

सीधे सादे से है कुछ पेंच ओ ख़म नहीं रखते

sidhe-saade-se-hai

सीधे सादे से है कुछ पेंच ओ ख़म नहीं रखते जी भर आता है तो रो लेते है