घर में ठंडे चूल्हे पर अगर ख़ाली पतीली है

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घर में ठंडे चूल्हे पर अगर ख़ाली पतीली है बताओ कैसे लिख दूँ धूप फागुन की नशीली है

उनका दावा मुफ़लिसी का मोर्चा सर हो गया

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उनका दावा, मुफ़लिसी का मोर्चा सर हो गया पर हकीक़त ये है मौसम और बदतर हो गया, बंद

शाम को जिस वक़्त ख़ाली हाथ घर जाता हूँ मैं

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शाम को जिस वक़्त ख़ाली हाथ घर जाता हूँ मैं मुस्कुरा देते है बच्चे और मर जाता हूँ

कुछ अधूरी हसरतें अश्क ए रवाँ में बह गए

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कुछ अधूरी हसरतें अश्क ए रवाँ में बह गए क्या कहें इस दिल की हालत, शिद्दत ए गम

ज़माना आया है बेहिजाबी का आम दीदार ए यार होगा

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ज़माना आया है बेहिजाबी का आम दीदार ए यार होगा सुकूत था पर्दादार जिसका वो राज़ अब आश्कार

जाने किस करनी का फल होगा

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जाने किस करनी का फल होगा कैसी फिजा, कैसे मौसम में जागे हम ? शहरों से सेहराओ तक

ना मस्ज़िदे ना शिवाले तलाश करते है

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ना मस्ज़िदे ना शिवाले तलाश करते है ये भूखे पेट निवाले तलाश करते है, हमारी सादा दिली देखो

किस ओर ये सफ़र है, संभल जाइए

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किस ओर ये सफ़र है, संभल जाइए कौन कब किस डगर है, संभल जाइए, नेक रस्ते पे चलते

हासिल हुई जब से आरज़ी शोहरते…

हासिल हुई जब से

हासिल हुई जब से आरज़ी शोहरते माल ओ ज़र के नशे में चूर हो गया, पा के ऊँचा

रोज़मर्रा वही एक ख़बर देखिए

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रोज़मर्रा वही एक ख़बर देखिए अब तो पत्थर हुआ काँचघर देखिए, सड़के चलने लगी आदमी रुक गया हो