भरोसा कैसे करे कोई अब तिज़ारत के हवालो का ?

भरोसा कैसे करे कोई अब तिज़ारत के हवालो का ?
न रहा सत्ता का यकीं हमको, न सत्ता के दलालों का,

दिखाई भी नहीं देता कही अब तो उगता हुआ सूरज,
अँधेरा तल्ख़ हो चला अब तो सवालो ही सवालो का,

ख़ुद को कल रात ख़्वाबो में ज़रा हँसते हुए जो देखा
बाद एक मुद्दत के नज़र आया मुझे चेहरा उजालो का,

इब्तिदा से इन्तेहा तक हर तस्वीर नंगी, लफ्ज़ भी नंगे
किसी कोठे से भी बदतर हो गया हुलिया रिसालो का,

अपने तीखे सवालो से भला उन्हें अब कौन डराएगा
मीडिया हाउस ही जब बन गए है अड्डा दलालों का..!!

~नवाब ए हिन्द

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