अज़ीज़ो न पूछो कहाँ रह गया

अज़ीज़ो न पूछो कहाँ रह गया
जहाँ जी लगा बस वहाँ रह गया,

जो रहना था बर्क़ ए तपाँ रह गया
क़फ़स जल गया आशियाँ रह गया,

हुआ मुंदमिल ज़ख़्म ए तीर ए नज़र
मगर दिल पे उस का निशाँ रह गया,

गया आशियाना ज़माना हुआ
फ़क़त अब ग़म ए आशियाँ रह गया,

ये दोनों भी मंज़िल पे पहुँचे मगर
ग़ुबार उड़ गया कारवाँ रह गया,

जहाँ कारवाँ का हुआ था क़ियाम
वहाँ कारवाँ का निशाँ रह गया,

इधर वहशत ए दिल मुझे ले उड़ी
उधर होश दामन कशाँ रह गया,

कहो बंदा परवर हो किस सोच में
अभी क्या कोई इम्तिहाँ रह गया ?

हर एक चीज़ ऐ क़द्र आई गई
ग़म ए इश्क़ ही जावेदाँ रह गया..!!

~क़द्र ओरैज़ी

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