अपना ख़ुर्शीद और अपना ही क़मर पैदा कर

अपना ख़ुर्शीद और अपना ही क़मर पैदा कर
तू मोहब्बत का शजर है तो समर पैदा कर,

हर बशर तुझ को नज़र आने लगे अपनी तरह
अपने अंदर तू वो ही क़ल्ब ओ नज़र पैदा कर,

ये तो मुमकिन ही नहीं है वो न चाहे तुझ को
हाँ मगर उस के लिए तू भी जिगर पैदा कर,

मुंतज़िर होगा तेरे वास्ते साहिल ऐ दोस्त
पहले तूफ़ान से लड़ने का हुनर पैदा कर,

तेरी आहें भी पहुँच जाएँगी रब तक एक दिन
आहों में अपनी वो दिल दोज़ असर पैदा कर,

रात तारीक अगर है तो तुझे डर क्या है ?
दाग़ ए दिल अपने जला और सहर पैदा कर,

तू भी हो जाएगा महबूब ए ज़माना साहिल
अपने अंदर वो मोहब्बत की नज़र पैदा कर..!!

~राम चंद्र वर्मा साहिल

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