आह ए जाँ सोज़ की महरूमी ए तासीर न देख
हो ही जाएगी कोई जीने की तदबीर न देख,
हादसे और भी गुज़रे तेरी उल्फ़त के सिवा
हाँ मुझे देख मुझे अब मेरी तस्वीर न देख,
ये ज़रा दूर पे मंज़िल ये उजाला ये सुकूँ
ख़्वाब को देख अभी ख़्वाब की ताबीर न देख,
देख ज़िंदाँ से परे रंग ए चमन जोश ए बहार
रक़्स करना है तो फिर पाँव की ज़ंजीर न देख,
कुछ भी हूँ फिर भी दुखे दिल की सदा हूँ नादाँ
मेरी बातों को समझ तल्ख़ी ए तक़रीर न देख,
वही मजरूह वही शाइर ए आवारा मिज़ाज
कोई उठा है तेरी बज़्म से दिलगीर न देख..!!
~मजरूह सुल्तानपुरी