आग भी दिल में लगी है और अश्क ए ग़म भी है
इश्क़ कहते हैं जिसे शोला भी है शबनम भी है,
वक़्त ए आख़िर चारागर जितनी ख़ुशी है ग़म भी है
यार की सूरत भी है आँखों में मेरा दम भी है,
बाइस ए तकलीफ़ भी है बाइस ए आराम भी
याद ए जानाँ ज़ख़्म भी है ज़ख़्म का मरहम भी है,
फिर ख़ता जन्नत में होगी बावजूद ए एहतियात
सिर्फ़ आदत ही नहीं ये फ़ितरत ए आदम भी है,
सब के आँसू पोंछने वाले इधर भी देख ले
आब दीदा तेरी महफ़िल में तेरा पुरनम भी है..!!
~पुरनम इलाहाबादी
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