फ़ना के तीर हवा के परों में रखे हैं
कि हम घरों की जगह मक़बरों में रखे है,
पाँव से लिपटा है ख्वाहिशों का सफ़र
हमारे सर हैं कि बस खंजरों में रखे हैं,
हमारे अहद का अंजाम देखे क्या हो
हम आईने हैं अगर पत्थरों में रखे है,
बुझा गया है कोई यूँ चिराग़ आँखों के
खिज़ां के फूल ही अब मंजरों में रखे हैं,
ऐ ज़िन्दगी न गुजरना हमारी गलियों से
अभी हमारे जनाज़े घरों में रखे हैं,
जवाज़ क्या दे अदालत को बे गुनाही का
हमारे फ़ैसले दानिश्वरों में रखे हैं,
हमारें सर पे हकायेक़ की धूप है नसरीन
हसीन ख़्वाब तो बस चादरों में रखे हैं..!!
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