ये तसव्वुर का वार झूठा है
ख़्वाब झूटे हैं सार झूठा है,
फूल तुम तोड़ लाए शाख़ों से
क्या बहारों से प्यार झूठा है ?
आँखों में कुछ ज़बान पर कुछ है
तेरा किरदार यार झूठा है,
सारी गुस्ताख़ियाँ रहीं क़ायम
उस पे रुत्बा वक़ार झूठा है,
लापता हूँ मैं घर नहीं कोई
चिट्ठी झूठी है तार झूठा है,
मौत से तेज़ दौड़ किस की है ?
उम्र पर शहसवार झूठा है,
धूप के शूल बिखरे हैं हर सूँ
चाँदनी का ख़ुमार झूठा है,
आँखों में रख हुनर तकल्लुम का
लफ़्ज़ों पर ऐतबार झूठा है,
बार ए ख़ातिर है हम को फ़िक्र ए ज़ीस्त
हसरतों का मज़ार झूठा है,
टूटना आइने की फ़ितरत है
पत्थरों से क़रार झूठा है,
‘चाँद’ कब तक करोगे दिल का यक़ीं
आप का इंतिज़ार झूठा है..!!
~चाँद अकबराबादी