ये अमीरों से हमारी फ़ैसलाकुन जंग थी

ये अमीरों से हमारी फ़ैसलाकुन जंग थी
फिर कहाँ से बीच में मस्जिद व मंदिर आ गए ?

जिनके चेहरे पर लिखी है जेल की ऊँची फ़सील
रामनामी ओढ़कर संसद के अंदर आ गए,

देखना सुनना व सच कहना जिन्हें भाता नहीं
कुर्सियों पर फिर वही बापू के बंदर आ गए,

कल तलक जो हाशिए पर भी न आते थे नज़र
आजकल बाज़ार में उनके कैलेंडर आ गए..!!

~अदम गोंडवी

जो उलझकर रह गई है फ़ाइलों के जाल में

1 thought on “ये अमीरों से हमारी फ़ैसलाकुन जंग थी”

Leave a Reply