ग़म की अँधेरी रात की जाने सहर न आए क्यों

ग़म की अँधेरी रात की जाने सहर न आए क्यों
पहरों जले किसी का दिल ज़ख़्म उभर न आए क्यों ?

अपने पराए हो गए ग़ैरों ने भी किया सितम
ऐसे में दर्दमंद दिल दर्द से भर न आए क्यों ?

तेरा ही जब ख़याल है आठों पहर दिमाग़ में
जागते सोते हर तरफ़ तू ही नज़र न आए क्यों ?

तेरे बिना अब एक पल मुझ से रहा न जाए है
ढूँढे तुझे मेरी नज़र तेरी ख़बर न आए क्यों ?

हुस्न ओ जमाल दिल फ़रेब उस पे ये सादगी तो दोस्त
अक़्ल तेरी अदाओं के ज़ेर ए असर न आए क्यों ?

सेहन ए चमन में वैसे तो गुल हैं हर एक रंग के
तेरे सिवा किसी पे भी दिल ये मगर न आए क्यों ?

ख़ुद ही अदावतों का बीज बोया है आप ने तो फिर
कीना निफ़ाक़ ओ बुग़्ज़ का उस में समर न आए क्यों ?

अपने करम की रौशनी उस ने बिखेर दी तो शाद
रंग हमारे बख़्त का बोलो निखर न आए क्यों..??

~शमशाद शाद

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