दुखों में उस के इज़ाफ़ा भी मैं ही करता हूँ
और इस कमी का इज़ाला भी मैं ही करता हूँ,
ज़रा बहुत मेरी झुंझलाहटें भी जाएज़ हैं
कि मदह ए साहब ए वाला भी मैं ही करता हूँ,
ख़ुशी के ख़्वाब सजाता ज़रूर हूँ लेकिन
सफ़ ए मलाल को सीधा भी मैं ही करता हूँ,
न अपने फ़ेअल का ग़म है न अपने क़ौल का दुख
निबाहता हूँ तो वअदा भी मैं ही करता हूँ,
तेरे विसाल की ख़ुशबू भी सिर्फ़ मेरी है
तेरे बग़ैर गुज़ारा भी मैं ही करता हूँ..!!
~शकील जमाली

























