अश्क पीने के लिए ख़ाक उड़ाने के लिए

अश्क पीने के लिए ख़ाक उड़ाने के लिए
अब मेरे पास ख़ज़ाना है लुटाने के लिए,

ऐसी दफ़अ न लगा जिस में ज़मानत मिल जाए
मेरे किरदार को चुन अपने निशाने के लिए,

किन ज़मीनों पे उतारोगे अब इमदाद का क़हर
कौन सा शहर उजाड़ोगे बसाने के लिए,

मैं ने हाथों से बुझाई है दहकती हुई आग
अपने बच्चे के खिलौने को बचाने के लिए,

हो गई है मेरी उजड़ी हुई दुनिया आबाद
मैं उसे ढूँढ रहा हूँ ये बताने के लिए,

नफ़रतें बेचने वालों की भी मजबूरी है
माल तो चाहिए दूकान चलाने के लिए,

जी तो कहता है कि बिस्तर से न उतरूँ कई रोज़
घर में सामान तो हो बैठ के खाने के लिए..!!

~शकील जमाली

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