अब तो ख़ुशी का ग़म है न ग़म की ख़ुशी मुझे

अब तो ख़ुशी का ग़म है न ग़म की ख़ुशी मुझे
बेहिस बना चुकी है बहुत ज़िंदगी मुझे,

वो वक़्त भी ख़ुदा न दिखाए कभी मुझे
उन की नदामतों पे हो शर्मिंदगी मुझे,

रोने पे अपने उन को भी अफ़्सुर्दा देख कर
यूँ बन रहा हूँ जैसे अब आई हँसी मुझे,

यूँ दीजिए फ़रेब ए मोहब्बत कि उम्र भर
मैं ज़िंदगी को याद करूँ ज़िंदगी मुझे,

रखना है तिश्ना काम तो साक़ी बस एक नज़र
सैराब कर न दे मेरी तिश्नालबी मुझे,

पाया है सब ने दिल मगर इस दिल के बावजूद
एक शय मिली है दिल में खटकती हुई मुझे,

राज़ी हों या ख़फ़ा हों वो जो कुछ भी हों शकील
हर हाल में क़ुबूल है उन की ख़ुशी मुझे..!!

~शकील बदायूनी

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