हैं मेरी परवाज़ के तेवर नए

हैं मेरी परवाज़ के तेवर नए
साथ मेरे देखिए मंज़र नए,

एक पुराने मयकदे में तिश्नगी
ढूँढती है साक़ी ओ साग़र नए,

बचपने का घर न भूलेगा कभी
चाहे जितने आप के हों घर नए,

कीजिए हर इल्म से आरास्ता
बच्चियों के हैं यही ज़ेवर नए,

एक नए फ़ुटपाथ पर मज़दूर था
मुफ़्लिसी ने जब दिए बिस्तर नए,

अब ज़रा ताबीर भी बदले फ़रोग़
देखता हूँ ख़्वाब तो अक्सर नए..!!

~फ़रोग़ ज़ैदी

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