तेरी उम्मीद तेरा इंतिज़ार जब से है
न शब को दिन से शिकायत न दिन को शब से है,
किसी का दर्द हो करते हैं तेरे नाम रक़म
गिला है जो भी किसी से तेरे सबब से है,
हुआ है जब से दिल ए ना सुबूर बेक़ाबू
कलाम तुझ से नज़र को बड़े अदब से है,
अगर शरर है तो भड़के जो फूल है तो खिले
तरह तरह की तलब तेरे रंग ए लब से है,
कहाँ गए शब ए फ़ुर्क़त के जागने वाले
सितारा ए सहरी हम कलाम कब से है..!!
~फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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