भूले बिसरे हुए ग़म याद बहुत करता है
मेरे अंदर कोई फ़रियाद बहुत करता है,
रोज़ आता है जगाता है डराता है मुझे
तंग मुझ को मेंरा हमज़ाद बहुत करता है,
मुझसे कहता है कि कुछ अपनी ख़बर ले बाबा
देख तू वक़्त को बर्बाद बहुत करता है,
निकली जाती है मेंरे पाँव के नीचे से ज़मीं
आसमाँ भी सितम ईजाद बहुत करता है,
कुछ तो हम सब्र ओ रज़ा भूल गए हैं शायद
और कुछ ज़ुल्म भी सय्याद बहुत करता है,
उस के जैसा तो कोई चाहने वाला ही नहीं
कर के पाबंद जो आज़ाद बहुत करता है,
बस्तियों में वो कभी ख़ाक उड़ा देता है
कभी सहराओं को आबाद बहुत करता है,
ग़म के रिश्तों को कभी तोड़ न देना वाली
ग़म ख़याल ए दिल ए नाशाद बहुत करता है..!!
~वाली आसी
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