कुटिया में कौन आएगा इस तीरगी के साथ
अब ये किवाड़ बंद करो ख़ामोशी के साथ,
साया है कम खजूर के ऊँचे दरख़्त का
उम्मीद बाँधिए न बड़े आदमी के साथ,
चलते हैं बच के शैख़ ओ बरहमन के साए से
अपना यही अमल है बुरे आदमी के साथ,
शाइस्तगान ए शहर मुझे ख़्वाह कुछ कहें
सड़कों का हुस्न है मेरी आवारगी के साथ,
शायर हिकायतें न सुना वस्ल ओ इश्क़ की
इतना बड़ा मज़ाक़ न कर शायरी के साथ,
लिखता है ग़म की बात मसर्रत के मूड में
मख़्सूस है ये तर्ज़ फ़क़त कैफ़ ही के साथ..!!
~कैफ़ भोपाली
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