ऐ दोस्त कहीं तुझ पे भी इल्ज़ाम न आए
इस मेरी तबाही में तेरा नाम न आए,
ये दर्द है हमदम उसी ज़ालिम की निशानी
दे मुझ को दवा ऐसी कि आराम न आए,
काँधे पे उठाए हैं सितम राह ए वफ़ा के
शिकवा मुझे तुम से है कि दो गाम न आए,
लगता है कि फैलेगी शब ए ग़म की सियाही
आँसू मेरी पलकों पे सर ए शाम न आए,
मैं बैठ के पीता रहूँ बस तेरी नज़र से
हाथों में कभी मेरे कोई जाम न आए,
बैठा हूँ दिया घर का जो नासिर मैं जला के
ऐसा न हो फिर वो दिल ए नाकाम न आए..!!
~हकीम नासिर