काश ! एक तो ख्वाइश पूरी हो मेरी इबादत के बगैर

काश ! एक तो ख्वाइश पूरी हो मेरी इबादत के बगैर
वो मुझे अपने गले से लगाए मेरी इजाजत के बगैर,

मेरी जंग किस किस से है उससे बेखबर हो तुम,
मेरा दिन गुजरे तो गुजरे कैसे तेरी शरारत के बगैर,

तेरी ख्वाइशों की राहों में चलते चलते थक रहा हूँ
मैंने तो खुद को खो दिया है तेरी तलाश के बगैर,

जब तक है ज़िंदगी, चाहता हूँ तुझे अपना बना लूँ,
मगर ये ख्वाहिश रहती है, सिर्फ हकीकत के बगैर,

मैं तो आग का दरिया हूँ और तू शोला है ज़माने का,
मिलने से पहले ही जल जाऊँ अपने मिलन के बगैर..!!

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