क़िस्से मेरी आशुफ़्ता नवाई के बहुत थे

क़िस्से मेरी आशुफ़्ता नवाई के बहुत थे
चर्चे तेरी अंगुश्त नुमाई के बहुत थे,

दुनिया की तलब ही से न फ़ुर्सत हुई वर्ना
अरमान तेरे दर की गदाई के बहुत थे,

कुछ दिल ही न माइल हुआ इस राह पे वर्ना
सामान तो जन्नत की कमाई के बहुत थे,

कल शब मेरे किरदार पे तन्क़ीद की शब थी
किरदार में पहलू भी बुराई के बहुत थे,

आज़ार की ख़सलत भी थी लोगों में नुमायाँ
कुछ शौक़ भी इस दिल को भलाई के बहुत थे,

अब साथ नहीं है भी तो शिकवा नहीं ‘अख़्तर’
एहसान भी मुझ पर मिरे भाई के बहुत थे..!!

~मजीद अख़्तर

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