मैं छू सकूँ तुझे मेरा ख़याल ए ख़ाम है क्या

मैं छू सकूँ तुझे मेरा ख़याल ए ख़ाम है क्या
तेरा बदन कोई शमशीर ए बे नियाम है क्या,

मेरी जगह कोई आईना रख लिया होता
न जाने तेरे तमाशे में मेरा काम है क्या,

असीर ए ख़ाक मुझे कर के तू निहाल सही
निगाह डाल के तो देख ज़ेर ए दाम है क्या,

ये डूबती हुई क्या शय है तेरी आँखों में
तेरे लबों पे जो रौशन है उस का नाम है क्या,

मुझे बता मैं तेरी ख़ाक अब कहाँ रख दूँ
कि ज़ेब अर्ज़ ओ समा में तेरा मक़ाम है क्या..!!

~~ज़ेब ग़ौरी

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