वफ़ा की आरज़ू करना, सफ़र की जुस्तजू करना
जो तुम मायूस हो जाओ, तो रब से गुफ़्तगू करना,
ये अक्सर हो भी जाता है कि कोई खो भी जाता है
मुक़द्दर को सताओगे तो फिर ये सो भी जाता है,
अगर तुम हौसला रखो वफ़ा का सिलसिला रखो
जिसे तुम खालिक़ कहते हो, तो उससे राब्ता रखो,
मैं ये दावे से कहता हूँ कभी नाक़ाम ना होगे
इश्क़ ए हकीकी को समझ जाओ, कभी बदनाम ना होगे..!!