ज़िंदगी तुझ को जिया है कोई अफ़्सोस नहीं
ज़हर ख़ुद मैं ने पिया है कोई अफ़्सोस नहीं,
मैंने मुजरिम को भी मुजरिम न कहा दुनिया में
बस यही जुर्म किया है कोई अफ़्सोस नहीं,
मेरी क़िस्मत में लिखे थे ये उन्हीं के आँसू
दिल के ज़ख़्मों को सिया है कोई अफ़्सोस नहीं,
अब गिरे संग कि शीशों की हो बारिश फ़ाकिर
अब कफ़न ओढ़ लिया है कोई अफ़्सोस नहीं..!!
~सुदर्शन फ़ाकिर