यूँ तो वो हर किसी से मिलती है
हम से अपनी ख़ुशी से मिलती है,
सेज महकी बदन से शर्मा कर
ये अदा भी उसी से मिलती है,
वो अभी फूल से नहीं मिलती
जूहिए की कली से मिलती है,
दिन को ये रखरखाव वाली शक्ल
शब को दीवानगी से मिलती है,
आजकल आप की ख़बर हम को
ग़ैर की दोस्ती से मिलती है,
शैख़ साहिब को रोज़ की रोटी
रात भर की बदी से मिलती है,
आगे आगे जुनून भी होगा
शेर में लौ अभी से मिलती है..!!
~मुस्तफ़ा ज़ैदी

























