यूँ तो कम कम थी मोहब्बत उस की
कम न थी फिर भी रिफ़ाक़त उस की,
सारे दुख भूल के हँस लेता था
ये भी थी एक करामत उस की,
उलझनें और भी थीं उस के लिए
एक मैं भी था मुसीबत उस की,
पहले भी पीने को जी करता था
मिल ही जाती थी इजाज़त उस की,
ख़्वाब में जैसे चला करता हूँ
देखता रहता हूँ सूरत उस की,
नाम रहता है ज़बाँ पर उस का
घर में रहती है ज़रूरत उस की,
उस की आदत थी शरारत करना
काश ये भी हो शरारत उस की,
फैलते बढ़ते हुए बिस्तर में
ढूँढता रहता हूँ क़ुर्बत उस की,
एक बोसीदा सा घर छोड़ गई
ले गई साथ वो जन्नत उस की..!!
~मोहम्मद अल्वी

























