यूँ लग रहा है जैसे कोई आस पास है
वो कौन है जो है भी नहीं और उदास है,
मुमकिन है लिखने वाले को भी ये ख़बर न हो
क़िस्से में जो नहीं है वही बात ख़ास है,
माने न माने कोई हक़ीक़त तो है यही
चर्ख़ा है जिस के पास उसी की कपास है,
इतना भी बन सँवर के न निकला करे कोई
लगता है हर लिबास में वो बे लिबास है,
छोटा बड़ा है पानी ख़ुद अपने हिसाब से
उतनी ही हर नदी है यहाँ जितनी प्यास है..!!
~निदा फ़ाज़ली
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