वो बख्शता है गुनाह ए अज़ीम भी लेकिन

वो बख्शता है गुनाह ए अज़ीम भी लेकिन
हमारी छोटी सी नेकी संभाल रखता है,

हम उसे भूल जाते है रौशनी में
वो तारीकी में भी ख्याल रखता है,

घरों में जिनके दीये नहीं है उनके लिए
फिज़ा में चाँद सितारे उछाल रखता है,

मुहब्बत अपने बन्दों से कमाल रखता है
वो एक अल्लाह है जो सबका ख्याल रखता है


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