उस को खो देने का एहसास तो कम बाक़ी है

उस को खो देने का एहसास तो कम बाक़ी है
जो हुआ वो न हुआ होता ये ग़म बाक़ी है,

अब न वो छत है न वो ज़ीना न अंगूर की बेल
सिर्फ़ एक उस को भुलाने की क़सम बाक़ी है,

मैंने पूछा था सबब पेड़ के गिर जाने का
उठ के माली ने कहा उस की क़लम बाक़ी है,

जंग के फ़ैसले मैदाँ में कहाँ होते हैं
जब तलक हाफ़िज़े बाक़ी हैं अलम बाक़ी है,

थक के गिरता है हिरन सिर्फ़ शिकारी के लिए
जिस्म घायल है मगर आँखों में रम बाक़ी है..!!

~निदा फ़ाज़ली

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