तुम अपने शिकवे की बातें न खोद खोद के पूछो
हज़र करो मेंरे दिल से कि इस में आग दबी है,
दिला ये दर्द ओ अलम भी तो मुग़्तनिम है कि आख़िर
न गिर्या ए सहरी है न आह ए नीम शबी है,
नज़र ब नक़्स ए गदायाँ कमाल ए बे अदबी है
कि ख़ार ए ख़ुश्क को भी दावा ए चमन नसबी है,
हुआ विसाल से शौक़ ए दिल ए हरीस ज़ियादा
लब ए क़दह पे कफ़ ए बादा जोश ए तिश्ना लबी है,
ख़ुशा वो दिल कि सरापा तिलिस्म ए बेख़बरी हो
जुनून ओ यास ओ अलम रिज़्क़ ए मुद्दआ तलबी है,
चमन में किस के ये बरहम हुइ है बज़्म ए तमाशा
कि बर्ग बर्ग ए समन शीशा रेज़ा ए हलबी है,
इमाम ए ज़ाहिर ओ बातिन अमीर ए सूरत ओ मअनी
अली वली असदुल्लाह जानशीन ए नबी है ..!!
~मिर्ज़ा ग़ालिब