तू मुझे याद करे ऐसा तरीक़ा निकले
मेरी यकतरफ़ा मोहब्बत का नतीजा निकले,
तेरी आँखों में दिखाई दे मोहब्बत मेरी
बे नमाज़ी तेरे बस्ते से मुसल्ला निकले,
वर्ना हम कब के चट्टानों में फँसे मर जाते
पाँव काटे तो तेरे दश्त से ज़िंदा निकले,
जंग में कौन निकलता है घरों से बाहर
तू ने आवाज़ लगाई थी लिहाज़ा निकले,
तेरी राहों में भटकते हुए मौत आ जाए
और ऐसे में मेरी जेब से नक़्शा निकले,
इतनी ख़ामोशी से निकले हैं तेरे शोर से हम
जैसे बाज़ार के मजमा से जनाज़ा निकले,
आज आऊँगा तेरे पास मोहब्बत ले कर
मुद्दतें हो गईं इज़्ज़त का जनाज़ा निकले..!!
~इब्राहीम अली ज़ीशान

























