सड़क पे दौड़ते महताब देख लेता हूँ

सड़क पे दौड़ते महताब देख लेता हूँ
मैं चलता फिरता हुआ ख़्वाब देख लेता हूँ,

मेरी नज़र से परे सैकड़ों जहाँ होंगे
मैं एक जहान तह ए आब देख लेता हूँ,

मैं टूटे बिखरे हुए दोस्तों की बस्ती में
नए निज़ाम के आदाब देख लेता हूँ,

अजीब धुँद है मैं अपनी हार में आलम
शिकस्त ए गुंबद ओ मेहराब देख लेता हूँ..!!

~आलम ख़ुर्शीद

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