रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ,
कुछ तो मेरे पिंदार ए मोहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिए आ,
पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तो
रस्म ओ रह ए दुनिया ही निभाने के लिए आ,
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ,
एक उम्र से हूँ लज़्ज़त ए गिर्या से भी महरूम
ऐ राहत एजाँ मुझ को रुलाने के लिए आ,
अब तक दिल ए ख़ुश फ़ह्म को तुझ से हैं उमीदें
ये आख़िरी शमएँ भी बुझाने के लिए आ..!!
~अहमद फ़राज़

























