जब से या रब मैं तेरे इस जहान में हूँ…
एक मुसलसल से इम्तिहान में हूँजबसे या रब मैं तेरे इस जहान में हूँ, सिर्फ़ इतना सा है
एक मुसलसल से इम्तिहान में हूँजबसे या रब मैं तेरे इस जहान में हूँ, सिर्फ़ इतना सा है
ये तो इस पर है कि कब और कहाँ होने लगेये तमाशा वो जहाँ चाहे वहाँ होने लगे,
ग़ज़ल को फिर सजा के सूरत ए महबूब लाया हूँसुनो अहल ए सुखन ! मैं फिर नया असलूब
दिल ए गुमशुदा ! कभी मिल ज़राकिसी ख़ुश्क खाक़ के ढेर परया किसी मकान की मुंडेर पर, दिल
आँखों में नींदों के सिलसिले भी नहींशिक़स्त ए ख़्वाब के अब मुझमे हौसले भी नहीं, नहीं नहीं !
यूँ ही उम्मीद दिलाते है ज़माने वालेकब पलटते है भला छोड़ के जाने वाले, तू कभी देख झुलसते
हसरतों से भरा क़ब्रिस्तान हूँ मैंआबाद कर मुझे कि वीरान हूँ मैं, तसल्ली दे मुझको कि तू है
तरसती आँखे, उदास चेहरा, नहीफ़ लहज़ा, बगैर तेरेबिखरी ज़ुल्फे, लिबास उजड़ा, वज़ूद ख़स्ता, बगैर तेरे, अमीक़ जंगल, घप
तरसती आँखे, उदास चेहरा, नजिफ लहज़े, बगैर तेरेबिखरी ज़ुल्फे, लिबास उजड़ा, वज़ूद ख़स्ता, बगैर तेरे, अमीक़ जंगल, घप
मेरे जैसा बन जाओगे, जब इश्क़ तुम्हे हो जाएगादीवारों से टकराओगे, जब इश्क़ तुम्हे हो जाएगा, हर बात