मुश्किल में है जान बहुत

मुश्किल में है जान बहुत
जान है अब हैरान बहुत,
 
उस पत्थर दिल इंसाँ पर
होते रहे क़ुर्बान बहुत,
 
मन बस्ती में कोई नहीं
अब तो है सुनसान बहुत,
 
अब तो मुझ को निकलना है
निकले हैं अरमान बहुत,
 
जो अपनों में है तन्हा
उस की है पहचान बहुत,
 
सब से मिलते मिलते में
ख़ुद से रहा अंजान बहुत
 
दिल से गए कुछ दिन रह कर
कर के गए बे जान बहुत
 
जीना शायद अब मुश्किल है
पर मरना है आसान बहुत..!!
संबंधित अश'आर | गज़लें

Leave a Reply