मेरी सारी ज़िंदगी को बे समर उस ने किया

मेरी सारी ज़िंदगी को बे समर उस ने किया
उम्र मेरी थी मगर उस को बसर उस ने किया,

मैं बहुत कमज़ोर था इस मुल्क में हिजरत के बा’द
पर मुझे इस मुल्क में कमज़ोर तर उस ने किया,

राहबर मेरा बना गुमराह करने के लिए
मुझ को सीधे रास्ते से दर ब दर उस ने किया,

शहर में वो मो’तबर मेरी गवाही से हुआ
फिर मुझे इस शहर में ना मो’तबर उस ने किया,

शहर को बरबाद कर के रख दिया उस ने मुनीर
शहर पर ये ज़ुल्म मेरे नाम पर उस ने किया..!!

~मुनीर नियाज़ी

जब ख़िलाफ़ ए मस्लहत जीने की नौबत आई थी

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