मान ले अब भी मेरी जान ए अदा दर्द न चुन
काम आती नहीं फिर कोई दुआ दर्द न चुन,
और कुछ देर में मुझ को चले जाना होगा
और कुछ देर मुझे ख़्वाब दिखा दर्द न चुन,
एक भी दर्द न कम होगा कई सदियों में
अब भी कहता हूँ तुझे वक़्त बचा दर्द न चुन,
वो जो लिखा है किसी तौर नहीं टल सकता
आ मेरे दिल में कोई दीप जला दर्द न चुन,
मैं तेरे लम्स से महरूम न रह जाऊँ कहीं
आख़िरी बार मुझे ख़ुद से लगा दर्द न चुन,
अब तो ये रेशमी पोरें भी छिदी जाती हैं
ख़ुद को अब बख़्श भी दे ज़ुल्म न ढह दर्द न चुन,
ये नहीं होंगे तो खाए नहीं हो जाऊँगा मैं
मेरे ज़ख़्मों से कोई गीत बना दर्द न चुन,
कुछ न देगा ये मसाइल से उलझते रहना
छोड़ सब कुछ मेरी बाँहों में समा दर्द न चुन..!!
~वसी शाह
Discover more from Hindi Gazals :: हिंदी ग़ज़लें
Subscribe to get the latest posts sent to your email.