मआल ए अहल ए ज़मीं बर सर ए ज़मीं आता

मआल ए अहल ए ज़मीं बर सर ए ज़मीं आता
जो बे यक़ीन हैं उन को भी फिर यक़ीं आता,

कहीं तो हम भी ठहरते जो हमनशीनी को
निकल के ख़्वाब से वो यार ए दिलनशीं आता,

वो जब तलक नहीं आता पुकारते रहते
तो देख लेते कि वो कब तलक नहीं आता,

ख़याल आया तो ये भी ख़याल आया है
यही ख़याल अगर रोज़ ए अव्वलीं आता,

चलो अब उस की ख़ुशी वो जहाँ भी मिल जाए
मज़ा तो जब था कि मिलने को वो यहीं आता,

बस एक बात हमारी समझ में आती है
समझ में वर्ना हमारी भी कुछ नहीं आता..!!

~अजमल सिराज

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